कुरुक्षेत्र: कोरोना के चलते किसानों को राहत देने के लिए सरकार उठा सकती है कुछ बड़े कदम
कुरुक्षेत्र: कोरोना के चलते किसानों को राहत देने के लिए सरकार उठा सकती है कुछ बड़े कदम
सार
विस्तार
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए घोषित राष्ट्रीय लॉकडाउन को लेकर किसानों के सामने आ रही चुनौतियों और समस्याओं को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद फिक्रमंद हैं। किसानों के हक में जल्दी ही सरकार कुछ बड़े फैसले ले सकती है। इनमें एक अहम फैसला यह हो सकता है कि किसानों की रबी की उपज को जल्दी मंडी तक पहुंचने से रोकने के लिए सरकार मई के बाद होने वाली सरकारी खरीद पर प्रति कुंतल लगभग 20 रुपए तक का अतिरिक्त लाभ किसानों को दे सकती है। प्रधानमंत्री कार्यालय में इस आशय का एक प्रस्ताव विचाराधीन है, जिस पर जल्दी ही सरकार फैसला ले सकती है। इसके अलावा किसान क्रेडिट कार्ड से लिए गए कर्ज पर लिए जाने वाले ब्याज दर को एक साल के लिए कम करने, बिना पूर्व बकाए का भुगतान किए किसान क्रेडिट कार्ड का नवीकरण (रिन्यूवल) करने, गन्ना किसानों को उनके बकाए का भुगतान कराने जैसे कदम भी उठाए जा सकते हैं।
यह जानकारी देने वाले सरकारी सूत्रों ने बताया कि इस समय किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या रबी की फसल की कटाई करके उसे बेचने के लिए मंडी और सरकारी खरीद केंद्रों में ले जाने को लेकर आने वाली है। सरकार इसे लेकर बेहद गंभीर है। दूसरा, कोरोना संक्रमण से निबटने के लिए घोषित राष्ट्रीय लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन करने की वजह से देश सभी फैक्ट्रियों, कारखानों में उत्पादन का काम ठप है।
होटल, रेस्टोरेंट, मॉल, डेयरी उद्योग, मिठाई उत्पादन, चॉकलेट, चिप्स आदि उद्योग भी बंद हैं। लोगों के घरों में सीमित रहने और लॉकडाउन को लेकर व्याप्त अनिश्चितता की वजह से कृषि उत्पादों, सब्जियों, दुग्ध उत्पादों, अंडों, फलों आदि की मांग एकाएक काफी घट गई है। इससे न सिर्फ दामों में गिरावट आ गई है बल्कि उत्पादकों के सामने अपने उत्पादों के भंडारण की विकट समस्या है।
जिसमें सब्जियों, फलों, अंडों और दूध के उत्पादकों के सामने सबसे ज्यादा संकट है। ऐसे में रबी की फसल पकने और कटने के बाद अगर किसान अपनी उपज (गेंहूं) लेकर मंडियों और सरकारी खरीद केंद्रों तक पहुंचने लगे, तो किसानों की भीड़ और बाजार में मांग की कमी के बावजूद आवक की बहुतायत हो जाएगी, जिसे संभालना भी मुश्किल होगा और सोशल डिस्टेंसिंग भी खत्म हो जाएगी।
सूत्रों के अनुसार इसे देखते हुए सरकार में यह सुझाव आया है कि फिलहाल रबी की उपज की सरकारी खरीद को 31 मई तक के लिए टाला जाए। लेकिन पूरी तरह इसे टालना भी मुमकिन नहीं है क्योंकि इससे जबर्दस्त किसान असंतोष पैदा होगा, जिसे संभालना टेढ़ी खीर होगी।
इसलिए सुझाव है कि यह घोषणा की जाए कि जो किसान अपनी उपज 31 मई के बाद बेचेंगे उन्हें प्रति कुंतल खरीद मूल्य का एक फीसदी ब्याज या प्रोत्साहन राशि के रूप में अतिरिक्त दिया जाएगा। इससे जहां वो किसान जो अपनी उपज का एक हिस्सा मई के आखिर तक अपने पास रख सकते हैं, रोक लेंगे।
अनुमान है कि इससे करीब 30 से 40 फीसदी गेहूं की आवक सरकारी खरीद केंद्रों और मंडी में कम हो सकती है। जिससे दबाव भी कम होगा, भीड़ भी कम होगी और बाजार में एकाएक आवक की बाढ़ नहीं होने से मांग और आपूर्ति का संतुलन भी बनेगा।
बाद में जून में जो किसान अपनी उपज सरकारी खरीद केंद्रों पर बेचेंगे उन्हें खरीद मूल्य का एक प्रतिशत प्रति कुंतल अतिरिक्त लाभ भी मिलेगा।
दरअसल लॉकडाउन होते ही सरकार इस बात को लेकर चिंतित है किसानों के लिए ऐसा क्या कुछ किया जाए, जिससे इस संकट के समय उन पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को कम से कम करके राहत प्रदान की जा सके।
इसके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और कृषि मंत्रालय लगातार उन कृषि विशेषज्ञों और किसान नेताओं से संवाद कर रहा है, जिन्हें देश की खेती किसानी और गांव देहात की जमीनी समझ है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने का फार्मूला तैयार करने वाले कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी अशोक दलवई लगातार कृषि क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों से बात करके फीडबैक ले रहे हैं।
हाल ही में दलवई ने कई लोगों से अलग-अलग बात की। इनमें से एक भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष डा.कृष्णवीर चौधरी ने सुझाव दिया कि देशभर के किसानों को तत्काल राहत देने के लिए सबसे पहले किसान क्रेडिट कार्ड पर मिलने वाले कर्ज के ब्याज की साढ़े सात फीसदी दर को बिना शर्त फिलहाल सीधे घटाकर चार फीसदी कर दिया जाए।
इससे किसानों पर कर्ज जल्दी चुकाने का जो मनोवैज्ञानिक दबाव होता है, उससे मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही अगले वर्ष के लिए बिना पिछले ऋण का भुगतान किए अगले साल के लिए किसान क्रेडिट कार्ड का नवीकरण (रिन्यूवल) कर दिया जाए।
जिससे किसान अपने कृषि कार्य के लिए आवश्यक धन जुटा सकें। चौधरी ने यह सुझाव भी दिया कि सरकार किसानों की गेहूं की खरीद के लिए मोबाइल ट्रकों के जरिए गांव-गांव खरीद करवाए, जैसे शहरों में होम डिली़वरी की जा रही है।
इससे किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए मंडियों और खरीद केंद्रों पर जाकर लाइन नहीं लगानी पड़ेगी और सरकार के सामाजिक एवं भौतिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) के अनुशासन का भी पालन हो जाएगा।
वरना अपनी उपज बेचने को मजबूर किसानों की भीड़ मंडियों और खरीद केंद्रों में जमा हो जाएगी और तब कोरोना संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाएगा। इसके साथ ही देश के कुल 18 करोड़ गन्ना किसानों का गन्ने के भुगतान का बकाया चीनी मिलों पर है, सरकार तत्काल उसका भुगतान सीधे बैंकों में कराने की व्यवस्था करे।
इन उपायों से किसान का आर्थिक संकट खत्म होगा और वह अपने गांव और घर में ही रहकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपना सहयोग दे सकेगा।
कृषि और किसानों के मामलों के जानकार और भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने भी मांग की है कि गेहूं की फसल के विक्रय प्रबंधन के लिए सरकार को कुछ विशेष पहल करनी चाहिए।
एक ट्वीट में जाखड़ मांग करते हैं कि सरकार घोषणा करे कि 31 मई के बाद जो गेहूं बाजार में आएगा सरकार उस पर 25 रुपये प्रति कुंतल अतिरिक्त लाभ किसानों को देगी। साथ ही सरकारी खरीद की समय सीमा 31 जुलाई तक बढ़ाई जाए। गांवों में गेहूं खरीद केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए। साथ ही पैकेजिंग जूट बैग की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह के मुताबिक लॉकडाउन के बाद किसानों पर दोहरे संकट की मार पड़ी है। पहले से ही बेमौसम बारिश और ओलों की बरसात ने पूरे उत्तर भारत में रबी की फसल का जबर्दस्त नुकसान किया है।
ऊपर से कोरोना संक्रमण के खतरे और लॉकडाउन ने किसानों के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। पुष्पेंद्र कहते हैं कि बाजार में भय और अनिश्चतता गहराने से किसानों को उचित दाम मिलेंगे इसकी उम्मीद बेहद कम है। जबकि गेहूं, सरसों, मटर, चना, प्याज, आदि की आवक बाजार में शुरू होने वाली है।
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के लातूर मंडी में चने का दाम गिरकर 3650 रुपये प्रति कुंतल पर आ गया है, जबकि चने का समर्थन मूल्य 4875 रुपए प्रति कुंतल है। इसी प्रकार अलवर की मंडी में सरसों के दाम सरसों के समर्थन मूल्य 4425 रुपये प्रति कुंतल के मुकाबले गिरकर 3600 रुपये प्रति कुंतल हो गए हैं।
कोरोना की वजह से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आयात निर्यात पर पड़े फर्क की वजह से तिलहनी फसलों के दामों में खासी गिरावट आ गई है। उपभोक्ताओं की मांग भी गिरी है और दूसरी तरफ कारखाने बंद होने, मजदूरों को दिहाड़ी न मिलने और नौकरी जाने से शहरों से उनके गावों की ओर पलायन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी दबाव बढ़ गया है।
पुष्पेंद्र चौधरी ने सरकार से मांग की है ग्रामीण अर्थव्यवस्था, किसानों और मजदूरों को राहत देने के लिए सरकार को प्रधानमंत्री किसान सम्मान राशि को छह हजार रुपए सालाना से बढ़ाकर 24 हजार रुपए प्रति किसान परिवार सालाना करके उसका एकमुश्त भुगतान तत्काल कर देना चाहिए।
इससे किसानों को राहत भी मिलेगी और बाजार में पैसा भी आएगास जो मांग बढ़ाएगा। वहीं भाजपा से जुड़े किसान नेता नरेश सिरोही के मुताबिक केंद्र सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए कई कदम उठाए हैं, उनमें 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य भी शामिल है।
इस सिलसिले मे लॉकडाउन से पहले किसानों की आमदनी बढ़ाने के मुद्दे पर काम कर रहे अशोक दलवई ने कई किसान विशेषज्ञों के साथ चर्चा की थी जिसमें आए सुझावों पर सरकार अमल पर विचार कर रही है।
यह जानकारी देने वाले सरकारी सूत्रों ने बताया कि इस समय किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या रबी की फसल की कटाई करके उसे बेचने के लिए मंडी और सरकारी खरीद केंद्रों में ले जाने को लेकर आने वाली है। सरकार इसे लेकर बेहद गंभीर है। दूसरा, कोरोना संक्रमण से निबटने के लिए घोषित राष्ट्रीय लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन करने की वजह से देश सभी फैक्ट्रियों, कारखानों में उत्पादन का काम ठप है।
होटल, रेस्टोरेंट, मॉल, डेयरी उद्योग, मिठाई उत्पादन, चॉकलेट, चिप्स आदि उद्योग भी बंद हैं। लोगों के घरों में सीमित रहने और लॉकडाउन को लेकर व्याप्त अनिश्चितता की वजह से कृषि उत्पादों, सब्जियों, दुग्ध उत्पादों, अंडों, फलों आदि की मांग एकाएक काफी घट गई है। इससे न सिर्फ दामों में गिरावट आ गई है बल्कि उत्पादकों के सामने अपने उत्पादों के भंडारण की विकट समस्या है।
जिसमें सब्जियों, फलों, अंडों और दूध के उत्पादकों के सामने सबसे ज्यादा संकट है। ऐसे में रबी की फसल पकने और कटने के बाद अगर किसान अपनी उपज (गेंहूं) लेकर मंडियों और सरकारी खरीद केंद्रों तक पहुंचने लगे, तो किसानों की भीड़ और बाजार में मांग की कमी के बावजूद आवक की बहुतायत हो जाएगी, जिसे संभालना भी मुश्किल होगा और सोशल डिस्टेंसिंग भी खत्म हो जाएगी।
सूत्रों के अनुसार इसे देखते हुए सरकार में यह सुझाव आया है कि फिलहाल रबी की उपज की सरकारी खरीद को 31 मई तक के लिए टाला जाए। लेकिन पूरी तरह इसे टालना भी मुमकिन नहीं है क्योंकि इससे जबर्दस्त किसान असंतोष पैदा होगा, जिसे संभालना टेढ़ी खीर होगी।
इसलिए सुझाव है कि यह घोषणा की जाए कि जो किसान अपनी उपज 31 मई के बाद बेचेंगे उन्हें प्रति कुंतल खरीद मूल्य का एक फीसदी ब्याज या प्रोत्साहन राशि के रूप में अतिरिक्त दिया जाएगा। इससे जहां वो किसान जो अपनी उपज का एक हिस्सा मई के आखिर तक अपने पास रख सकते हैं, रोक लेंगे।
अनुमान है कि इससे करीब 30 से 40 फीसदी गेहूं की आवक सरकारी खरीद केंद्रों और मंडी में कम हो सकती है। जिससे दबाव भी कम होगा, भीड़ भी कम होगी और बाजार में एकाएक आवक की बाढ़ नहीं होने से मांग और आपूर्ति का संतुलन भी बनेगा।
बाद में जून में जो किसान अपनी उपज सरकारी खरीद केंद्रों पर बेचेंगे उन्हें खरीद मूल्य का एक प्रतिशत प्रति कुंतल अतिरिक्त लाभ भी मिलेगा।
दरअसल लॉकडाउन होते ही सरकार इस बात को लेकर चिंतित है किसानों के लिए ऐसा क्या कुछ किया जाए, जिससे इस संकट के समय उन पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को कम से कम करके राहत प्रदान की जा सके।
इसके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और कृषि मंत्रालय लगातार उन कृषि विशेषज्ञों और किसान नेताओं से संवाद कर रहा है, जिन्हें देश की खेती किसानी और गांव देहात की जमीनी समझ है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने का फार्मूला तैयार करने वाले कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी अशोक दलवई लगातार कृषि क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों से बात करके फीडबैक ले रहे हैं।
हाल ही में दलवई ने कई लोगों से अलग-अलग बात की। इनमें से एक भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष डा.कृष्णवीर चौधरी ने सुझाव दिया कि देशभर के किसानों को तत्काल राहत देने के लिए सबसे पहले किसान क्रेडिट कार्ड पर मिलने वाले कर्ज के ब्याज की साढ़े सात फीसदी दर को बिना शर्त फिलहाल सीधे घटाकर चार फीसदी कर दिया जाए।
इससे किसानों पर कर्ज जल्दी चुकाने का जो मनोवैज्ञानिक दबाव होता है, उससे मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही अगले वर्ष के लिए बिना पिछले ऋण का भुगतान किए अगले साल के लिए किसान क्रेडिट कार्ड का नवीकरण (रिन्यूवल) कर दिया जाए।
जिससे किसान अपने कृषि कार्य के लिए आवश्यक धन जुटा सकें। चौधरी ने यह सुझाव भी दिया कि सरकार किसानों की गेहूं की खरीद के लिए मोबाइल ट्रकों के जरिए गांव-गांव खरीद करवाए, जैसे शहरों में होम डिली़वरी की जा रही है।
इससे किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए मंडियों और खरीद केंद्रों पर जाकर लाइन नहीं लगानी पड़ेगी और सरकार के सामाजिक एवं भौतिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) के अनुशासन का भी पालन हो जाएगा।
वरना अपनी उपज बेचने को मजबूर किसानों की भीड़ मंडियों और खरीद केंद्रों में जमा हो जाएगी और तब कोरोना संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाएगा। इसके साथ ही देश के कुल 18 करोड़ गन्ना किसानों का गन्ने के भुगतान का बकाया चीनी मिलों पर है, सरकार तत्काल उसका भुगतान सीधे बैंकों में कराने की व्यवस्था करे।
इन उपायों से किसान का आर्थिक संकट खत्म होगा और वह अपने गांव और घर में ही रहकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपना सहयोग दे सकेगा।
कृषि और किसानों के मामलों के जानकार और भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने भी मांग की है कि गेहूं की फसल के विक्रय प्रबंधन के लिए सरकार को कुछ विशेष पहल करनी चाहिए।
एक ट्वीट में जाखड़ मांग करते हैं कि सरकार घोषणा करे कि 31 मई के बाद जो गेहूं बाजार में आएगा सरकार उस पर 25 रुपये प्रति कुंतल अतिरिक्त लाभ किसानों को देगी। साथ ही सरकारी खरीद की समय सीमा 31 जुलाई तक बढ़ाई जाए। गांवों में गेहूं खरीद केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए। साथ ही पैकेजिंग जूट बैग की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह के मुताबिक लॉकडाउन के बाद किसानों पर दोहरे संकट की मार पड़ी है। पहले से ही बेमौसम बारिश और ओलों की बरसात ने पूरे उत्तर भारत में रबी की फसल का जबर्दस्त नुकसान किया है।
ऊपर से कोरोना संक्रमण के खतरे और लॉकडाउन ने किसानों के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। पुष्पेंद्र कहते हैं कि बाजार में भय और अनिश्चतता गहराने से किसानों को उचित दाम मिलेंगे इसकी उम्मीद बेहद कम है। जबकि गेहूं, सरसों, मटर, चना, प्याज, आदि की आवक बाजार में शुरू होने वाली है।
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के लातूर मंडी में चने का दाम गिरकर 3650 रुपये प्रति कुंतल पर आ गया है, जबकि चने का समर्थन मूल्य 4875 रुपए प्रति कुंतल है। इसी प्रकार अलवर की मंडी में सरसों के दाम सरसों के समर्थन मूल्य 4425 रुपये प्रति कुंतल के मुकाबले गिरकर 3600 रुपये प्रति कुंतल हो गए हैं।
कोरोना की वजह से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आयात निर्यात पर पड़े फर्क की वजह से तिलहनी फसलों के दामों में खासी गिरावट आ गई है। उपभोक्ताओं की मांग भी गिरी है और दूसरी तरफ कारखाने बंद होने, मजदूरों को दिहाड़ी न मिलने और नौकरी जाने से शहरों से उनके गावों की ओर पलायन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी दबाव बढ़ गया है।
पुष्पेंद्र चौधरी ने सरकार से मांग की है ग्रामीण अर्थव्यवस्था, किसानों और मजदूरों को राहत देने के लिए सरकार को प्रधानमंत्री किसान सम्मान राशि को छह हजार रुपए सालाना से बढ़ाकर 24 हजार रुपए प्रति किसान परिवार सालाना करके उसका एकमुश्त भुगतान तत्काल कर देना चाहिए।
इससे किसानों को राहत भी मिलेगी और बाजार में पैसा भी आएगास जो मांग बढ़ाएगा। वहीं भाजपा से जुड़े किसान नेता नरेश सिरोही के मुताबिक केंद्र सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए कई कदम उठाए हैं, उनमें 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य भी शामिल है।
इस सिलसिले मे लॉकडाउन से पहले किसानों की आमदनी बढ़ाने के मुद्दे पर काम कर रहे अशोक दलवई ने कई किसान विशेषज्ञों के साथ चर्चा की थी जिसमें आए सुझावों पर सरकार अमल पर विचार कर रही है।
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